एक आँख थी आधे लब थे
और इक चोटी लम्बी सी
एक कान में चमक रही थी
चाँद सी बाली पड़ी हुई
एक हिनाई हाथ था जिस में
लाल काँच की चौड़ी थी
एक गली में दरवाज़े से
झाँक रही थी इक लड़की
जाने कौन गली थी अब मैं
छान रहा हूँ गली गली
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दिल है प्यासा हुसैन के मानिंद
तख़्लीक़
हवा सर्द है
घर से बाहर किस बला का शोर था
किसी से कोई तअल्लुक़ रहा न हो जैसे
आग अपने ही लगा सकते हैं
शेर तो सब कहते हैं क्या है
कौन?
रोटी
जुर्म ओ सज़ा
लम्बी सड़क पे दूर तलक कोई भी न था
पहला ख़ुदा