इस भरी दुनिया से वो चल दिया चुपके से यूँ
जैसे किसी को भी अब उस की ज़रूरत न थी
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गुल-दान में गुलाब की कलियाँ महक उठीं
रोज़ कहता है हवा का झोंका
मुतमइन है वो बना कर दुनिया
नींद रातों की उड़ा देते हैं
सच है कि वो बुरा था हर इक से लड़ा किया
बाएँ आँख में तिल वाले की ज़बानी
मिरे होने ने मुझ को मार डाला
पर तोल के बैठी है मगर उड़ती नहीं है
आँख में दहशत न थी हाथ में ख़ंजर न था
चाँद की कगर रौशन
चला जाऊँगा जैसे ख़ुद को तन्हा छोड़ कर 'अल्वी'
इरादा है किसी जंगल में जा रहूँगा मैं