हम से जो आगे गए कितने मेहरबान थे
दूर तलक राह में एक भी पत्थर न था
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ख़ुदा
सर्दी में दिन सर्द मिला
इरादा है किसी जंगल में जा रहूँगा मैं
बिखेर दे मुझे चारों तरफ़ ख़लाओं में
इत्तिफ़ाक़
मैं अपना नाम तिरे जिस्म पर लिखा देखूँ
शोर साहिल का समुंदर में न था
इक तस्वीर तजरीदी
रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू
यूँ तो कम कम थी मोहब्बत उस की
डिप्रेशन