मिरे होने ने मुझ को मार डाला
नहीं था तो बहुत महफ़ूज़ था मैं
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ढूँडता हूँ मैं ज़मीं अच्छी सी
बाज़ार के दामों की शिकायत है हर इक को
नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें
उतार फेंकूँ बदन से फटी पुरानी क़मीस
माना कि तू ज़हीन भी है ख़ूब-रू भी है
कभी तो ऐसा भी हो राह भूल जाऊँ मैं
कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए
रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू
जन्म दिन
ज़मीन लोगों से डर गई है
एक शाम बाग़ में
ड्रैकुला