बाज़ार के दामों की शिकायत है हर इक को
फिर भी सर-ए-बाज़ार बड़ी भीड़ लगी है
Wasi Shah
Gulzar
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Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
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शरीफ़े के दरख़्तों में छुपा घर देख लेता हूँ
यक्का उलट के रह गया घोड़ा भड़क गया
ढूँडता हूँ मैं ज़मीं अच्छी सी
उतार फेंकूँ बदन से फटी पुरानी क़मीस
शोर साहिल का समुंदर में न था
परिंदे दूर फ़ज़ाओं में खो गए 'अल्वी'
कभी कभी
मिला हमें बस एक ख़ुदा
तीसरी आँख
अच्छे दिन कब आएँगे
इस शहर में कहीं पे हमारा मकाँ भी हो
ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं