अपना घर आने से पहले
इतनी गलियाँ क्यूँ आती हैं
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ये सब क्या था
जाते जाते देखना पत्थर में जाँ रख जाऊँगा
सुब्ह से खोद रहा हूँ घर को
अच्छे दिन कब आएँगे
मिला हमें बस एक ख़ुदा
थोड़ी सर्दी ज़रा सा नज़ला है
मौत भी दूर बहुत दूर कहीं फिरती है
रात मिली तन्हाई मिली और जाम मिला
कौन?
घर में सामाँ तो हो दिलचस्पी का
आँखें खोलो ख़्वाब समेटो जागो भी
मैं उस के बदन की मुक़द्दस किताब