हम ने वक़्त को
घड़ी में क़ैद कर दिया है
जहाँ वो रात दिन
हाथ फैला के
हाथ उठा के
हाथ जोड़ के
फ़रियाद करता रहता है!
जब वो आज़ाद था
वो ज़माना
याद करता रहता है!!
Wasi Shah
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परिंदे दूर फ़ज़ाओं में खो गए 'अल्वी'
कोई बैंड-बाजा सा कानों में था
सच कहाँ कहता है जाने वाला
हुआ चली तो मिरे जिस्म ने कहा मुझ को
आग अपने ही लगा सकते हैं
अंधेरा है कैसे तिरा ख़त पढ़ूँ
सदियों से किनारे पे खड़ा सूख रहा है
बाएँ आँख में तिल वाले की ज़बानी
शांति की दुकानें खोली हैं
सूरज
मौत न आई तो 'अल्वी'
कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए