अब के बरसात में पानी आए
ख़ुश्क दरिया में रवानी आए
हर घटा काली हो काजल जैसी
रंग हर खेत पे धानी आए
फूल सा रूप लिए दिन निकले
रात आए तो सुहानी आए
धूप आए तो सुहानी आए
चाँदनी ले के जवानी आए
शेर कहते हैं यूँही से 'अल्वी'
क्या हमें बात बनानी आए
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देखा तो सब के सर पे गुनाहों का बोझ था
कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए
अंधेरा है कैसे तिरा ख़त पढ़ूँ
बहुत ख़ुश हुए आईना देख कर
सब नमाज़ें बाँध कर ले जाऊँगा मैं अपने साथ
कभी कभी
शगुन ले कर न क्यूँ घर से चला मैं
मौत न आई तो 'अल्वी'
शोर साहिल का समुंदर में न था
कल रात सूनी छत पे अजब सानेहा हुआ
बरसों घिसा-पिटा हुआ दरवाज़ा छोड़ कर