बहुत ख़ुश हुए आईना देख कर
यहाँ कोई सानी हमारा न था
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तीसरी आँख
तुड़ा-मुड़ा है मगर ख़ुदा है
सर्दी में दिन सर्द मिला
मगर मैं ख़ुदा से कहूँगा
दिन इक के बा'द एक गुज़रते हुए भी देख
सुब्ह से खोद रहा हूँ घर को
मरने के डर से और कहाँ तक जियेगा तू
अचानक तिरी याद का सिलसिला
यूँही हम पर सब के एहसाँ हैं बहुत
दिन ढल रहा था जब उसे दफ़ना के आए थे
चला जाऊँगा जैसे ख़ुद को तन्हा छोड़ कर 'अल्वी'
लड़की अच्छी है 'अल्वी'