सब नमाज़ें बाँध कर ले जाऊँगा मैं अपने साथ
और मस्जिद के लिए गूँगी अज़ाँ रख जाऊँगा
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कोई मौसम हो भले लगते थे
ख़लल
इस भरी दुनिया से वो चल दिया चुपके से यूँ
यक्का उलट के रह गया घोड़ा भड़क गया
कभी तुझ से ऐसा भी याराना था
तारीफ़ सुन के दोस्त से 'अल्वी' तू ख़ुश न हो
मैं और तू
नौहा
ग़ज़ल कही है कोई भाँग तो नहीं पी है
रात कौन आया था
सुखाने बाल ही कोठे पे आ गए होते
चाक कर लो अगर गिरेबाँ है