चाक कर लो अगर गिरेबाँ है
दोस्तो मौसम-ए-बहाराँ है
दिल है प्यासा हुसैन के मानिंद
ये बदन कर्बला का मैदाँ है
कितना मुश्किल है ज़िंदगी करना
और न सोचो तो कितना आसाँ है
सन छिहत्तर से मिल लो जी भर के
जी लिए कैसे अक़्ल हैराँ है
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जन्म दिन
दिन में परियाँ क्यूँ आती हैं
अब जिधर भी जाते हैं
बिना मुर्ग़े के पर झटकती हैं
आग अपने ही लगा सकते हैं
हाए वो लोग जो देखे भी नहीं
सामने दीवार पर कुछ दाग़ थे
नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें
इक लड़का था इक लड़की थी
शरीफ़े के दरख़्तों में छुपा घर देख लेता हूँ
मगर मैं ख़ुदा से कहूँगा
हज़ारों लाखों दिल्ली में मकाँ हैं