हौज़ में
बे-हरकत
पानी की सतह पर
एक मेंडक
पाँव लमबाए
आराम से
ऊँघ रहा है!
अभी कोई
वज़ू करने आएगा
और
पानी में
हलचल मचाएगा!!
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धूप ने गुज़ारिश की
आसमान पर जा पहुँचूँ
अब तो चुप-चाप शाम आती है
शोर साहिल का समुंदर में न था
छोड़ गया मुझ को 'अल्वी'
मैं और तू
गर्मी
सुब्ह से खोद रहा हूँ घर को
दिन भर के दहकते हुए सूरज से लड़ा हूँ
दुख का एहसास न मारा जाए
ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं
आगे मत सोचो