गवाही देता वही मेरी बे-गुनाही की
वो मर गया तो उसे अब कहाँ से लाऊँ मैं
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घर की चिंता
ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं
आग अपने ही लगा सकते हैं
यार आज मैं ने भी इक कमाल करना है
उतार फेंकूँ बदन से फटी पुरानी क़मीस
शरीफ़े के दरख़्तों में छुपा घर देख लेता हूँ
इक याद रह गई है मगर वो भी कम नहीं
जन्म दिन
आज फिर मुझ से कहा दरिया ने
माना कि तू ज़हीन भी है ख़ूब-रू भी है
न जाने दिल कहाँ रहने लगा है
गर्मी