यार आज मैं ने भी इक कमाल करना है
जिस्म से निकलना है जी बहाल करना है
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(653) Peoples Rate This
शांति की दुकानें खोली हैं
दरवाज़े पर पहरा देने
नया साल दीवार पर टाँग दे
बिखेर दे मुझे चारों तरफ़ ख़लाओं में
मरने के डर से और कहाँ तक जियेगा तू
वोल्फ-मैन
उस से बिछड़ते वक़्त मैं रोया था ख़ूब-सा
सोते सोते अचानक गली डर गई
इक याद रह गई है मगर वो भी कम नहीं
रद्द-ए-अमल
ख़लल
लोग कहते हैं कि मुझ सा था कोई