हाँ मैं शिकस्ता-दिल हूँ मगर आइना तो हूँ
तू अपना रंग देख मिरे हाल पर न जा
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है सफ़र में कारवान-बहर-ओ-बर किस के लिए
चलते चलते यूँही क़दम जब डोलता है
कौन सुनता है हवाओं की अजब सरगोशियाँ
कफ़-ए-सैय्याद दाम-ए-ख़ुश-नुमा ज़ंजीर ओ ज़िंदाँ तक
फिर कोई ख़्वाब तिरे रंगों से जुदा नहीं देखा
हम शेर सुनाते हैं मफ़्हूम तुम्हारा है
ये क़िस्सा-ए-जाँ यूँ ही मशहूर नहीं होता
ग़ज़ल अपनी रिवायत है ग़ज़ल तहज़ीब से होगी
महजूर कोई बात दिलेराना लिखेगा
इक रब्त था ब-रंग-ए-दिगर भी नहीं रहा
अव्वल-ए-इश्क़ की साअत जा कर फिर नहीं आई