छूटे हैं ऐसे बार-ए-सफ़र से तमाम लोग
जैसे किसी के दोश पे सर भी नहीं रहा
Parveen Shakir
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Habib Jalib
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(541) Peoples Rate This
चलते चलते यूँही क़दम जब डोलता है
ग़ज़ल अपनी रिवायत है ग़ज़ल तहज़ीब से होगी
उजड़े हुए हैं शहर के दीवार-ओ-दर न जा
हाँ मैं शिकस्ता-दिल हूँ मगर आइना तो हूँ
महजूर कोई बात दिलेराना लिखेगा
पहले सब आवाज़ें इक शोर में ढलती हैं
है सफ़र में कारवान-बहर-ओ-बर किस के लिए
ये क़िस्सा-ए-जाँ यूँ ही मशहूर नहीं होता
कौन सुनता है हवाओं की अजब सरगोशियाँ
फिर कोई ख़्वाब तिरे रंगों से जुदा नहीं देखा
इक रब्त था ब-रंग-ए-दिगर भी नहीं रहा