आगे को बढ़ सके है न पीछे को हट सके
याँ तक तिरे ख़याल में अब डट गया है दिल
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जहाँ में जो कई गुल-बदन ख़ुश-नयन है
नागिन है ज़ुल्फ़-ए-यार न ज़िन्हार देखना
आईने से मुझ दल के तहय्युर को मिला देख
ज़रा कीजिए ग़ौर हज़रत-सलामत
इस माजरा को जा के कहूँ किस के रू-ब-रू
दीजे नहीं कसू को तो फिर लीजिए भी नहिं
जितना कि है इफ़रात तिरी कम-निगही का
बहुतों ने जिसे अर्श पे बे-जान में देखा
चटपटी दिल की बुझी यार के देखे से यूँ
वो यार हम से ख़फ़ा है तो हो हुआ सो हुआ
जफ़ा का उस की गिला मत करो हुआ सो हुआ