इस माजरा को जा के कहूँ किस के रू-ब-रू
मेरी तो दौड़ हैगी तिरे आस्ताँ तिलक
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पूछे कोई किसी को सो इम्कान ही नहीं
किया अज़ल से है साने' ने बुत-परस्त मुझे
जफ़ा का उस की गिला मत करो हुआ सो हुआ
वो जो इक तोला कई माशा थी यारी तुम से
तुझ तेग़ की निगह से मिरा कट गया है दिल
देखा है कहीं गुल ने तुझे जिस की ख़ुशी से
आगे को बढ़ सके है न पीछे को हट सके
दीजे नहीं कसू को तो फिर लीजिए भी नहिं
बहुतों ने जिसे अर्श पे बे-जान में देखा
नागिन है ज़ुल्फ़-ए-यार न ज़िन्हार देखना
जहाँ में जो कई गुल-बदन ख़ुश-नयन है
दिलदार हुआ ना-ख़ुश अब दिल का ख़ुदा-हाफ़िज़