पूछे कोई किसी को सो इम्कान ही नहीं
ना-पुर्सी का ये दौर अनोखा भला फिरा
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किया अज़ल से है साने' ने बुत-परस्त मुझे
जितना कि है इफ़रात तिरी कम-निगही का
फ़स्ल-ए-गुल में हर घड़ी ये अब्र-ओ-बाराँ फिर कहाँ
नसीहत से मेरी ये सौ कोस भागे
बहुतों ने जिसे अर्श पे बे-जान में देखा
नागिन है ज़ुल्फ़-ए-यार न ज़िन्हार देखना
वो यार हम से ख़फ़ा है तो हो हुआ सो हुआ
साने' मिरा वो है कि हो कैसी ही चोब-ए-ख़ुश्क
जफ़ा का उस की गिला मत करो हुआ सो हुआ
जहाँ में जो कई गुल-बदन ख़ुश-नयन है
आईने से मुझ दल के तहय्युर को मिला देख
जावे भी फिर आवे भी कई शक्ल से हर बार