आदमी थे शय हुए सौदा हुए
बद हुए बद-तर हुए बे-जा हुए
कम हुए कम-तर हुए फिर ना हुए
इस तरह हम इश्क़ में ज़ाया हुए
Javed Akhtar
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Gulzar
Parveen Shakir
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ठोकरों से बिखर नहीं सकती
जब मुश्किल हालात लगे
मिरी आँखों से हिजरत का वो मंज़र क्यूँ नहीं जाता
नया अब सिलसिला जोड़ा न जाए
तेरी दौलत रह जाएगी तेरे घर चौबारों तक
तुम्हारी याद के मंज़र पुराने घेर लेते हैं
मैं जब से सच को सच कहने लगा हूँ
बच-बचा कर जब कहा तारीफ़ मैं कम पड़ गया
मंगल को बजरंग-बली से तेरा शुक्र मनाऊँ
गोरख-धंधा हो जाऊँ क्या?
जो हम तेरी आँखों के तारे हुए हैं