मंगल को बजरंग-बली से तेरा शुक्र मनाऊँ
और शुक्र को तू अल्लाह से मेरा मंगल माँगे
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गोरख-धंधा हो जाऊँ क्या?
मिरी आँखों से हिजरत का वो मंज़र क्यूँ नहीं जाता
तीरगी की अपनी ज़िद है जुगनुओं की अपनी ज़िद
तेरी दौलत रह जाएगी तेरे घर चौबारों तक
जो हम तेरी आँखों के तारे हुए हैं
नया अब सिलसिला जोड़ा न जाए
तुम्हारी याद के मंज़र पुराने घेर लेते हैं
मैं जब से सच को सच कहने लगा हूँ
बच-बचा कर जब कहा तारीफ़ मैं कम पड़ गया
आदमी थे शय हुए सौदा हुए
जब मुश्किल हालात लगे