फिर बजे मेरे ख़यालों में सुनहरे कंगन
भूले-बिसरे हुए लम्हात मुझे याद आए
ईद के रोज़ किसी ने भी दुआ जब माँगी
दो हसीं मेहंदी लगे हात मुझे याद आए
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झिलमिलाते हुए सपनों का स्वयंवर बन कर
जलती रात सुलगते साए
पथर
आज क्या देखा ख़लाओं के सुनहरे ख़्वाब में
कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
सुर्ख़ होंटों की ताज़गी के लिए
झुक गईं मिल के अजनबी आँखें
बहुत मुख़्तसर सा तआ'रुफ़ है मेरा
हो गया हूँ हर तरफ़ बद-नाम तेरे शहर में
पहले तो बहुत गर्दिश-ए-दौराँ से लड़ा हूँ