ओस में भीगी हुई तन्हाइयों के जिस्म से
आ रही है तेरे पैराहन की ख़ुशबू इस तरह
नर्म ख़्वाबों के शबिस्तानों में लहराती हुई
गुनगुनाए रात की अल्हड़ जवानी जिस तरह
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ये शब तो क्या सहर को भी शायद नहीं पता
तेरी ख़ुश-रंग चूड़ियाँ अब तक
कितने पाकीज़ा हैं नौ-ख़ेज़ जवानी के कलस
सलीक़ा है मुझे तारों से लौ लगाने का
मावरा
नग़्मा नुमा
हम बिखर जाएँगे नग़्मों-भरे ख़्वाबों की तरह
अना और अंदेशा
बहुत मुख़्तसर सा तआ'रुफ़ है मेरा
आँख-मिचोली
कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
इस हक़ीक़त का हसीं ख़्वाबों को अंदाज़ा नहीं