बहुत मुख़्तसर सा तआ'रुफ़ है मेरा
न जोश-ए-जुनूँ हूँ न राज़-ए-निहाँ हूँ
किताबों में मुझ को कहाँ ढूँडते हो
मैं चेहरे पर लिक्खी हुई दास्ताँ हूँ
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कितने सपनों के मुकुट टूट गए इक पल में
मावरा
इस हक़ीक़त का हसीं ख़्वाबों को अंदाज़ा नहीं
यूँ लहकता है तिरे नौ-ख़ेज़ ख़्वाबों का बदन
जलती रात सुलगते साए
तुम ने लिक्खा है
कितने पाकीज़ा हैं नौ-ख़ेज़ जवानी के कलस
कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
तुम ने लिक्खा है मिरे ख़त मुझे वापस कर दो
इल्तिमास
ऑटोग्राफ
आँख-मिचोली