दीदा-ए-दिल को यूँ नज़र आया
एक धुँदली सी याद का चेहरा
जैसे दुल्हन की माँग में मिट्टी
जैसे बेवा के हाथ में सहरा
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(801) Peoples Rate This
कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
सुरज का अलमिया
मैं ने देखा जब आदमी का लहू
आख़िर उस की सूखी लकड़ी एक चिता के काम आई
आँख-मिचोली
तेरी ख़ुश-रंग चूड़ियाँ अब तक
हाथ जो बहर-ए-दुआ उठे हैं झुक जाएँगे
रू-ब-रू सीना-ब-सीना पा-ब-पा और लब-ब-लब
नग़्मा नुमा
हो गया हूँ हर तरफ़ बद-नाम तेरे शहर में
ओस में भीगी हुई तन्हाइयों के जिस्म से