दूर पीपल की बूढ़ी शाख़ों में
इक परिंदा सा फड़फड़ाया है
दिल-ए-बेताब देखना तो ज़रा
क्या किसी ने मुझे बुलाया है
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(798) Peoples Rate This
गर्लफ्रेंड
पहले तो बहुत गर्दिश-ए-दौराँ से लड़ा हूँ
यूँ लहकता है तिरे नौ-ख़ेज़ ख़्वाबों का बदन
इल्तिमास
आरती हम क्या उतारें हुस्न-ए-माला-माल की
झुक गईं मिल के अजनबी आँखें
कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
गुफ़्तुगू क्यूँ न करें दीदा-ए-तर से बादल
आख़िर उस की सूखी लकड़ी एक चिता के काम आई
हाथ जो बहर-ए-दुआ उठे हैं झुक जाएँगे
तेरी ख़ुश-रंग चूड़ियाँ अब तक
रात बोझल भी है भयानक भी