कितने सपनों के मुकुट टूट गए इक पल में
कितनी यादों के तिलक वक़्त के माथे से धुले
मैं ने धोए हुए हैं धूल भरे पाँव मगर
अपनी आँखों के मोहब्बत भरे गंगा-जल से
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अपने माथे पर सजाए हुए संदल का तिलक
सुरज का अलमिया
आज क्या देखा ख़लाओं के सुनहरे ख़्वाब में
कितने पाकीज़ा हैं नौ-ख़ेज़ जवानी के कलस
हम बिखर जाएँगे नग़्मों-भरे ख़्वाबों की तरह
आरती हम क्या उतारें हुस्न-ए-माला-माल की
झुक गईं मिल के अजनबी आँखें
रात बोझल भी है भयानक भी
दीदा-ए-दिल को यूँ नज़र आया
तेरी ख़ुश-रंग चूड़ियाँ अब तक
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कौन कहता है कि बेनाम-ओ-निशाँ हो जाऊँगा