अपने माथे पर सजाए हुए संदल का तिलक
आज आई है तिरी याद की जोगन ऐसे
आरती मेरी उतारेगी मिरे ही घर में
और फिर लौट के जाएगी न शायद जैसे
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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सुर्ख़ होंटों की ताज़गी के लिए
जलती रात सुलगते साए
अना और अंदेशा
हो गया हूँ हर तरफ़ बद-नाम तेरे शहर में
झुक गईं मिल के अजनबी आँखें
रात की भीगी पलकों पर जब अश्क हमारे हँसते हैं
नुक़ूश
गुफ़्तुगू क्यूँ न करें दीदा-ए-तर से बादल
ऑटोग्राफ
मावरा
कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
कितने पाकीज़ा हैं नौ-ख़ेज़ जवानी के कलस