सुर्ख़ होंटों की ताज़गी के लिए
ख़ून किस ने दिया जवानी का
मुझ को पहचान ऐ निगार-ए-हयात
मैं हूँ उनवान तिरी कहानी का
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कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
कितने सपनों के मुकुट टूट गए इक पल में
गर्लफ्रेंड
देखो कि दिल-जलों की क्या ख़ूब ज़िंदगी है
बहुत मुख़्तसर सा तआ'रुफ़ है मेरा
हम बिखर जाएँगे नग़्मों-भरे ख़्वाबों की तरह
कभी तो खुल के बरस अब्र-ए-मेहरबाँ की तरह
झिलमिलाते हुए सपनों का स्वयंवर बन कर
फिर बजे मेरे ख़यालों में सुनहरे कंगन
मैं ने देखा जब आदमी का लहू
हाथ जो बहर-ए-दुआ उठे हैं झुक जाएँगे
सनसनाती हुई हवा की तरह