सनसनाती हुई हवा की तरह
यूँ तिरी याद ज़ेहन में आई
दिन-ढले दूर जंगलों में कहीं
जैसे रोती हो शाम-ए-तन्हाई
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हो गया हूँ हर तरफ़ बद-नाम तेरे शहर में
किस ने देखे होंगे अब तक ऐसे नए निराले पत्थर
रात बोझल भी है भयानक भी
सिगरेट
न पूछ दिल के ख़राबे से और क्या निकला
देखो कि दिल-जलों की क्या ख़ूब ज़िंदगी है
यूँ लहकता है तिरे नौ-ख़ेज़ ख़्वाबों का बदन
तेरी ख़ुश-रंग चूड़ियाँ अब तक
तुम ने लिक्खा है
हम बिखर जाएँगे नग़्मों-भरे ख़्वाबों की तरह
आज है अहल-ए-मोहब्बत का मुक़द्दस त्यौहार