आज है अहल-ए-मोहब्बत का मुक़द्दस त्यौहार
रंग क्यूँ लाए न मासूम दुआओं का असर
ईद का दिन है चलो आज गले मिल जाएँ
तुम हो मस्जिद की अज़ाँ, मैं हूँ शिवाले का गजर
Faiz Ahmad Faiz
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तुम ने लिक्खा है मिरे ख़त मुझे वापस कर दो
पथर
ऑटोग्राफ
रू-ब-रू सीना-ब-सीना पा-ब-पा और लब-ब-लब
रात बोझल भी है भयानक भी
देखो कि दिल-जलों की क्या ख़ूब ज़िंदगी है
सिगरेट
ओस में भीगी हुई तन्हाइयों के जिस्म से
कितने सपनों के मुकुट टूट गए इक पल में
दूर पीपल की बूढ़ी शाख़ों में
किस ने देखे होंगे अब तक ऐसे नए निराले पत्थर
दुनिया सोचे शौक़ से सोचे आज और कल के बारे में