झिलमिलाते हुए सपनों का स्वयंवर बन कर
बिजलियाँ सी मिरे एहसास में लहराई हैं
नज़र आता नहीं कुछ भी तिरे जल्वों के सिवा
तेरी आँखें मिरी आँखों में उतर आई हैं
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आँख-मिचोली
नग़्मा नुमा
आज है अहल-ए-मोहब्बत का मुक़द्दस त्यौहार
यूँ लहकता है तिरे नौ-ख़ेज़ ख़्वाबों का बदन
किस ने देखे होंगे अब तक ऐसे नए निराले पत्थर
न अहल-ए-मय-कदा ने मुस्कुरा कर बात की हम से
कितने सपनों के मुकुट टूट गए इक पल में
रू-ब-रू सीना-ब-सीना पा-ब-पा और लब-ब-लब
सिगरेट
गुफ़्तुगू क्यूँ न करें दीदा-ए-तर से बादल
तुम ने लिक्खा है
दुनिया सोचे शौक़ से सोचे आज और कल के बारे में