आए अगर क़यामत तो धज्जियाँ उड़ा दें
फिरते हैं जुस्तुजू में फ़ित्ने तिरी गली के
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(451) Peoples Rate This
नीची नज़रों से न देखो सर-ए-महशर देखो
उन की ख़ल्वत में 'रसा' भी होगा
'रसा' को दिल में रखते हैं 'रसा' के जानने वाले
दुश्मन की बात जब तिरी महफ़िल में रह गई
आशिक़ को तेरे लाख कोई रहनुमा मिले
बअ'द-ए-फ़ना भी ख़ैर से तन्हा नहीं हैं हम
आईना ख़ुद-नुमाई उन को सिखा रहा है
कौन सा इश्क़-ए-बुताँ में हमें सदमा न हुआ
जी चाहा जिधर छोड़ दिया तीर अदा को
पी के कर लेता हूँ तौबा जब से ये दस्तूर है
आने को नज़र में मिरी सौ फ़ित्ना-गर आए