ज़िंदगी कहते हैं किस को मौत किस का नाम है
मेहरबानी आप की न-मेहरबानी आप की
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बढ़ा ये शक कि ग़ैरों कि तन में आग लगी
गर्दिश-ए-चश्म है पैमाने में
हिज्र है अब था यहीं में ज़ार हम पहलू-ए-दोस्त
वस्ल के दिन का इशारा है कि ढल जाऊँगा
ख़ार-ओ-ख़स फेंके चमन के रास्ते जारी करे
सुर्ख़ हो जाता है मुँह मेरी नज़र के बोझ से
हम अजल के आने पर भी तिरा इंतिज़ार करते
क्यूँ कुंज-ए-लहद के मुत्तसिल जाऊँ गा
तिफ़्ली ने बे-ख़ुदी का आग़ाज़ किया
जो मुझे मर्ग़ूब हो वो सोगवारी चाहिए
सिए जाते हैं कफ़न आप के दीवानों के
मार डालेगी हमें ये ख़ुश-बयानी आप की