सिए जाते हैं कफ़न आप के दीवानों के
तार दामन के हैं टुकड़े हैं गरेबानों के
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आप दिल जा कर जो ज़ख़्मी हो तो मिज़्गाँ क्या करे
कुछ अहल-ए-ज़मीं हाल नया कहते हैं
गर्म रफ़्तार है तेरी ये पता देते हैं
हम अजल के आने पर भी तिरा इंतिज़ार करते
अंदोह-ए-शबाब टालने को ख़म हूँ
ज़िंदगी कहते हैं किस को मौत किस का नाम है
शराब-ए-नाब का क़तरा जो साग़र से निकल जाए
उक़्दे उल्फ़त के सब ऐ रश्क-ए-क़मर खोल दिए
जोश-ए-वहशत मेरे तलवों को ये ईज़ा भी सही
न छोड़ा दिल-ए-ख़स्ता-जाँ चलते चलते
वस्ल के दिन का इशारा है कि ढल जाऊँगा
ख़ार-ओ-ख़स फेंके चमन के रास्ते जारी करे