कुछ दिल से झुके हुए कहा करते हैं
आँसू बेकार भी बहा करते हैं
पीरों की इबादत का मुअ'य्यन नहीं वक़्त
हर वक़्त रूकूअ' में रहा करते हैं
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Javed Akhtar
Rahat Indori
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Allama Iqbal
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ठहर जावेद के अरमाँ दिल-ए-मुज़्तर निकलते हैं
बढ़ा ये शक कि ग़ैरों कि तन में आग लगी
अगर गुल की कोई पती झड़ी है
गर्दिश-ए-चश्म है पैमाने में
न छोड़ा दिल-ए-ख़स्ता-जाँ चलते चलते
हिज्र है अब था यहीं में ज़ार हम पहलू-ए-दोस्त
हाए शर्म-ए-दिलबरी उस दिलरुबा के हाथ है
जो हवा है सूरत-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ तेज़ है
मार डालेगी हमें ये ख़ुश-बयानी आप की
है बे-ख़ुद वस्ल में दिल हिज्र में मुज़्तर सिवा होगा
अंदोह-ए-शबाब टालने को ख़म हूँ
दिला मा'शूक़ जो होता है वो सफ़्फ़ाक होता है