क्यूँ कुंज-ए-लहद के मुत्तसिल जाऊँगा
कहने के लिए मतलब-ए-दिल जाऊँगा
पीरी से बनूँगा मुनकसिर और 'रशीद'
झुकते झुकते ज़मीं से और मिल जाऊँगा
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शुरूअ' अहल-ए-मोहब्बत के इम्तिहान हुए
मार डालेगी हमें ये ख़ुश-बयानी आप की
कभी गेसू न बिगड़े क़ातिल के
जुनूँ की फ़स्ल आई बढ़ गई तौक़ीर पत्थर की
बढ़ा ये शक कि ग़ैरों कि तन में आग लगी
राज़ उल्फ़त के अयाँ रात को सारे होते
ज़िंदगी कहते हैं किस को मौत किस का नाम है
दुनिया से सभी बुरे भले जाएँगे
पैरी में हवास-ओ-होश सब खोते हैं
मुझ को मंज़ूर है मरने पे सुबुक-बारी हो
क्यूँ कुंज-ए-लहद के मुत्तसिल जाऊँ गा
दम-ए-रफ़्तार-ए-जानाँ ये सदा-ए-नाज़ आती है