दुनिया से सभी बुरे भले जाएँगे
क्या ख़ल्क़ से जुज़ गुनाह ले जाएँगे
पीरी से हैं ख़म हश्र में देखेगा कौन
जन्नत में झुके झुके चले जाएँगे
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Gulzar
Mir Taqi Mir
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Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Anwar Masood
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आप दिल जा कर जो ज़ख़्मी हो तो मिज़्गाँ क्या करे
कुछ दिल से झुके हुए कहा करते हैं
तनख़्वाह-ए-तबर बहर-ए-दरख़्तान-ए-कुहन है
राज़ उल्फ़त के अयाँ रात को सारे होते
तिफ़्ली ने बे-ख़ुदी का आग़ाज़ किया
ठहर जावेद के अरमाँ दिल-ए-मुज़्तर निकलते हैं
दम-ए-रफ़्तार-ए-जानाँ ये सदा-ए-नाज़ आती है
जो हवा है सूरत-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ तेज़ है
क्यूँ कुंज-ए-लहद के मुत्तसिल जाऊँ गा
कब तक में रंज-ओ-ग़म की शिद्दत देखूँ
हाए शर्म-ए-दिलबरी उस दिलरुबा के हाथ है
जिस को आदत वस्ल की हो हिज्र से क्यूँकर बने