दिल-ए-वीराँ को देखते क्या हो
ये वही आरज़ू की बस्ती है
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तुम्हारे ब'अद ख़ुदा जाने क्या हुआ दिल को
सुब्ह से शाम के आसार नज़र आने लगे
'सैफ़' अंदाज़-ए-बयाँ रंग बदल देता है
दिल ने पाया क़रार पहलू में
अब वो सौदा नहीं दीवानों में
शगुफ़्त-ए-गुंचा-ए-महताब कौन देखेगा
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
ग़म-गुसारो बहुत उदास हूँ मैं
ज़ोहद किस किस ने लुटाए हैं तुम्हें क्या मालूम
तुम ने दीवाना बनाया मुझ को
चैन अब मुझ को तह-ए-दाम तो लेने देते
'सैफ़' पी कर भी तिश्नगी न गई