मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए
मिरे आज़माने वाले मुझे आज़मा के रोए
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मग़रूर थे अपनी ज़ात पर हम
क्या क़यामत है हिज्र के दिन भी
तेरी आँखों में रंग-ए-मस्ती है
जब तसव्वुर में न पाएँगे तुम्हें
चलो मय-कदे में बसेरा ही कर लो
दिल ने पाया क़रार पहलू में
तिरी नज़र से ज़माने बदलते रहते हैं
जी नहीं आप से क्या मुझ को शिकायत होगी
'सैफ़' अंदाज़-ए-बयाँ रंग बदल देता है
हुस्न जल्वा दिखा गया अपना
क्या मंज़िल-ए-ग़म सिमट गई है
वो भी हमें सरगिराँ मिले हैं