शोर दिन को नहीं सोने देता
शब को सन्नाटा जगा देता है
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जब तसव्वुर में न पाएँगे तुम्हें
तुम को बेगाने भी अपनाते हैं मैं जानता हूँ
'सैफ़' अंदाज़-ए-बयाँ रंग बदल देता है
थकी थकी सी फ़ज़ाएँ बुझे बुझे तारे
तिरी नज़र से ज़माने बदलते रहते हैं
मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए
तेरी आँखों में रंग-ए-मस्ती है
ग़म-ए-दिल किसी से छुपाना पड़ेगा
जी नहीं आप से क्या मुझ को शिकायत होगी
कुछ तो रंगीनी-ए-अफ़कार खुले
कैसे जीते हैं ये किस तरह जिए जाते हैं
सुब्ह से शाम के आसार नज़र आने लगे