थकी थकी सी फ़ज़ाएँ बुझे बुझे तारे
बड़ी उदास घड़ी है ज़रा ठहर जाओ
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वफ़ा अंजाम होती जा रही है
दिल-ए-वीराँ को देखते क्या हो
शायद तुम्हारे साथ भी वापस न आ सकें
एक से एक है ग़ारत-गर-ए-ईमान यहाँ
मेरा होना भी कोई होना है
दर-पर्दा जफ़ाओं को अगर जान गए हम
कभी जिगर पे कभी दिल पे चोट पड़ती है
आप ठहरे हैं तो ठहरा है निज़ाम-ए-आलम
गरचे सौ बार ग़म-ए-हिज्र से जाँ गुज़री है
तिरी नज़र से ज़माने बदलते रहते हैं
ग़म-गुसारो बहुत उदास हूँ मैं
चैन अब मुझ को तह-ए-दाम तो लेने देते