क्या करें आँख अगर उस से सिवा चाहती है
ये जहान-ए-गुज़राँ आइना-ख़ाना ही सही
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आसेब-सिफ़त ये मिरी तन्हाई अजब है
दिल माँगे है मौसम फिर उम्मीदों का
आब-ए-हैराँ पर किसी का अक्स जैसे जम गया
इक उम्र की देर
शाएरी झूट सही इश्क़ फ़साना ही सही
हम तो यूँ उलझे कि भूले आप ही अपना ख़याल
सफ़र की शाम सितारा नसीब का जागा
ये रस्ता
कब इस से क़ब्ल नज़र में गुल-ए-मलाल खिला
समुंदर की ख़ुश्बू