कोई ऐसे वक़्त में हम से बिछड़ा है
शाम ढले जब पंछी घर लौट आते हैं
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ज़ियाँ गर कुछ हुआ तो उतना जितना सूद होता है
तुम में तो कुछ भी वाहियात नहीं
ये कहो ये न कहो ऐसे कहो ऐसे नहीं
वो एक शख़्स मिरे पास जो रहा भी नहीं
उसे न मिलने की सोचा है यूँ सज़ा देंगे
तू क्या जाने तेरी बाबत क्या क्या सोचा करते हैं
कभी मय-कदा कभी बुत-कदा कभी काबा तो कभी ख़ानक़ाह
टटोलो परख लो चलो आज़मा लो
साल, पर साल, और फिर इस साल
शहर में आ ही गए हैं तो गुज़ारा कर लें
बड़ी सर्द रात थी कल मगर बड़ी आँच थी बड़ा ताव था