शहर में अम्न-ओ-अमाँ हो ये ज़रूरी है मगर
हाकिम-ए-वक़त के माथे पे लिखा ही कुछ है
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इज़हार-ए-तशक्कुर
एक इंच मुस्कुराहट
सय्याल तसव्वुर है उबलने की तरह का
फ़ज़ा-ए-नम में सदाओं का शोर हो जाए
हम-मर्तबा न समझो रुत्बा मिरा तो जानो
नया लहजा ग़ज़ल का मिस्रा-ए-सानी में रक्खा है
ये और बात कि गमले में उग रहा हूँ मैं
सराबों का सफ़र
तिलिस्म-ए-सफ़र
मूए ने मुँह की खाई फिर भी ये ज़ोर ज़ोरी
नया आदम