ऐ दोस्त इस ज़मान-ओ-मकाँ के अज़ाब में
दुश्मन है जो किसी को दुआ-ए-हयात दे
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(551) Peoples Rate This
दर-ए-मय-ख़ाना से दीवार-ए-चमन तक पहुँचे
यारब सराब-ए-अहल-ए-हवस से नजात दे
उठो ज़माने के आशोब का इज़ाला करें
शौक़ रातों को है दरपय कि तपाँ हो जाऊँ
शौक़ रातों को है दर पे कि तपाँ हो जाऊँ
इस्लाह-ए-अहल-ए-होश का यारा नहीं हमें
मैं ने कहा कि तजज़िया-ए-जिस्म-ओ-जाँ करो
ऐ अहल-ए-नज़र सोज़ हमीं साज़ हमीं हैं
नुमूद उन की भी दौर-ए-सुबू में थी कल रात
वो तमाशा हूँ हज़ारों मिरे आईने हैं
शायद रुख़-ए-हयात से सरके नक़ाब और