हुजूम-ए-गुल में रहे हम हज़ार दस्त दराज़
सबा-नफ़स थे किसी पर गिराँ नहीं गुज़रे
Rahat Indori
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साग़र उठा के ज़ोहद को रद हम ने कर दिया
नुमूद उन की भी दौर-ए-सुबू में थी कल रात
मौसम-ए-गुल तिरे इनआ'म अभी बाक़ी हैं
दिन को बहर-ओ-बर का सीना चीर कर रख दीजिए
हम दिल-ए-ज़ोहरा-वशाँ में ख़ालिक़-ए-अंदेशा हैं
शौक़ रातों को है दर पे कि तपाँ हो जाऊँ
यारब सराब-ए-अहल-ए-हवस से नजात दे
वो तमाशा हूँ हज़ारों मिरे आईने हैं
बग़ैर साग़र ओ यार-ए-जवाँ नहीं गुज़रे
दर-ए-मय-ख़ाना से दीवार-ए-चमन तक पहुँचे
मैं ने कहा कि तजज़िया-ए-जिस्म-ओ-जाँ करो
ऐ अहल-ए-नज़र सोज़ हमीं साज़ हमीं हैं