हर ख़िज़ाँ ग़ारत-गर-ए-चमन ही सही
फिर भी इक सरख़ुशी बहार में है
मौत पर इख़्तियार हो कि न हो
ज़िंदगी अपने इख़्तियार में है
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है फ़ितरत-ए-ज़न रमीदा आहू की तरह
ये आज आए हैं किस अजनबी से देस में हम
ज़बाँ करती है दिल की तर्जुमानी देखते जाओ
ऐसा न हो ये दर्द बने दर्द-ए-ला-दवा
कुछ और गुमरही-ए-दिल का राज़ क्या होगा
तस्कीन-ए-विसाल ओ रंज-ए-फ़ुर्क़त क्या है
बरसात की छा गईं घटाएँ साक़ी
यूँ कौन सी चीज़ है जो दुनिया में नहीं
इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
किस ने ग़म के जाल बिखेरे
नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने
वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे