दिल की हर आरज़ू है ख़्वाबीदा
अब न वो कैफ़ियत न सोज़ न रंग
हर नज़र एक शोला-ए-बे-नूर
हर नफ़्स एक साज़-ए-बे-आहंग
Mir Taqi Mir
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हर ज़र्रा उभर के कह रहा है
उठी है जो क़दमों से वो दामन से अड़ी है
इंसाँ में रूह-ए-आदमिय्यत भी नहीं
आसाँ नहीं हाल-ए-दिल अयाँ हो जाना
अजनबी ख़त-ओ-ख़ाल
वो मुझ से हुए हम-कलाम अल्लाह अल्लाह
दिल को आए कि निगाहों को यक़ीं आ जाए
सायों से लिपट रहे थे साए
बुझी बुझी सी सितारों की रौशनी है अभी
रोज़ दोहराते थे अफ़्साना-ए-दिल
सुकून-ए-क़ल्ब ओ शकेब-ए-नज़र की बात करो
तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे