तमन्ना कुछ तो ले आती है लब पर
ये कुछ क़िस्से सुनाती है नज़र से
मगर है आँख ऐसी राज़-परवर
नज़र को भी छुपाती है नज़र से
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पूछता क्या है हम-नशीं मुझ से
हुस्न मजबूर-ए-जफ़ा है शायद
आँसुओं में अलम का रंग न था
ऐसे भी थे कुछ हालात
आसाँ नहीं हाल-ए-दिल अयाँ हो जाना
काविश-ए-बेश-ओ-कम की बात न कर
आज 'तबस्सुम' सब के लब पर
आग़ोश में आ कि कामरानी कर लूँ
हर दर्द को कर लिया गवारा मैं ने
इंसाँ में रूह-ए-आदमिय्यत भी नहीं
मैं आ रहा हूँ
हर ख़िज़ाँ ग़ारत-गर-ए-चमन ही सही